सुप्रीम कोर्ट का फैसला : दिव्यांगों को पदोन्नति में आरक्षण से वंचित नहीं किया जा सकता

सुप्रीम कोर्ट का फैसला : दिव्यांगों को पदोन्नति में आरक्षण से वंचित नहीं किया जा सकता




सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि कभी-कभी कानून को लागू करना आसान होता है लेकिन सामाजिक मानसिकता को बदलना अधिक कठिन होता है।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि सरकार को दिव्यांग लोगों के लिए प्रमोशनल कैडर में पर्याप्त पद रखने चाहिए। यह बहाना नहीं बनाया जाना चाहिए कि दिव्यांगों के लिए पद उपलब्ध नहीं हैं।



सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ऐसा कहना कि प्रमोशनल कैडर के पद को कार्यात्मक या अन्य कारणों से दिव्यांग व्यक्तियों के लिए आरक्षित नहीं किया जा सकता है, यह पदोन्नति में आरक्षण की संकल्पना को परास्त करने की 'चाल' है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह की स्थिति के परिणामस्वरूप ठहराव और निराशा होगी, क्योंकि दूसरों को पदोन्नति होगी और दिव्यांग व्यक्तियों की नहीं होगी।

शीर्ष अदालत ने केरल सरकार द्वारा नौ मार्च, 2020 के हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर एक अपील को खारिज करते हुए ये बातें कही हैं। हाईकोर्ट ने अनुकंपा के आधार पर 1996 में पुलिस विभाग में टाइपिस्ट के रूप में नियुक्ति के बाद महिला को कैशियर के रूप में पदोन्नति लाभ देने का निर्देश दिया था। शीर्ष अदालत ने कहा कि सेवा में प्रवेश का तरीका भी भेदभावपूर्ण पदोन्नति का मामला नहीं बन सकता।

जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने माना कि दिव्यांगों के लिए आरक्षण, पदों की पहचान पर निर्भर नहीं होनी चाहिए, क्योंकि रोजगार में गैर-भेदभाव, कानून का जनादेश है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि फीडर कैडर में काम करने वाले अन्य व्यक्तियों के साथ-साथ दिव्यांग व्यक्ति को भी पदोन्नति के लिए विचार किया जाना चाहिए। 

कानून में सरकार को ऐसे व्यक्तियों से भरे जाने वाले पदों की पहचान करने का आदेश दिया गया है। पदोन्नति कैडर में भी पदों की पहचान की जानी चाहिए और दिव्यांगों के लिए आरक्षित किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पदोन्नति में आरक्षण को हटाने के लिए किसी पद्धति का उपयोग नहीं किया जा सकता है। 

एक बार उस पद की पहचान हो जाने के बाद तार्किक निष्कर्ष यह होगा कि यह दिव्यांगों के लिए आरक्षित होगा। पदोन्नति में आरक्षण प्रदान करने के लिए नियमों की अनुपस्थिति से दिव्यांगों के पदोन्नति में आरक्षण के अधिकार को परास्त नहीं किया जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट ने दिव्यांगों को समान अधिकार सुनिश्चित करने के लिए वर्ष 1995 और 2016 में पारित कानूनों का उल्लेख करते हुए कहा है कि कभी-कभी कानून को लागू करना आसान होता है लेकिन सामाजिक मानसिकता को बदलना कहीं अधिक कठिन होता है। समाजिक मानसिकता, अधिनियम के इरादे को विफल करने के तरीके और साधन खोजने का प्रयास करते हैं।





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